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लालिमा thought by sneh premchand

पश्चिम में दूर कहीं जब लालिमा आदित्य की सिंधु का आलिंगन  कर लेती है। ज़मी आसमा के मधुर मिलन पर ,मानो प्रकृति भी दुआएं देती है।  ऐसा नयनाभिराम दृश्य मन को भीतर से मोह लेता है। जाने कितने  अनकहे संदेसे,ये आदित्य हमारे साहित्य को दे देता है।।

प्रकाश पुंज thought by sneh premchand

गहन घटाटोप में प्रभापुंज से चमके थे कान्हा, किया पुनरोदय भारत का,भटके हुओं को राह दिखाई। जब जब हुई थी हानि धर्म की, कारागार में उनके जन्म की  शुभ घड़ी आयी।।          स्नेह प्रेमचंद

ग्यारह thought by sneh premchand

एक और एक होते हैं गयारह एकता मे बल है,बचपन से सुनते आए हैं। बहुत सही है,ये आज़मा कर देख लो, इकठ्ठे होने से बन जाते एक दूजे के साये हैं।।

प्रेम वृक्ष thought by snehpremchand

 प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,नीला अम्बर मानो अपने अंक में नीलम को समेट लेता है।जैसे माता सावित्री, सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

चौखट thought by sneh premchand

जब कभी दिल और दिमाग में ज़द्दोज़हद हो,एक चौखट अंतरात्मा की भी खुली होती है,जो वो कहे,वही  मान लो।।

यादें

कितनी यादें जुडी हुई हैं माँ तेरेेअस्तित्व के साथ,सोच कर  सिरहन सी उठती है हिया में,ज़िन्दगी का अनुभूतियों से परिचय करवाने वाली का सर पर अब रहा नही हाथ।।

कुछ दरगुजर,कुछ दरकिनार

ना इकरार करते हैं  न करते हैं इसरार।  यूं तो रह जाएंगे,  हम बीच मझधार।। जमींदोज हो जाएंगी ख्वाहिशें,  दिल हो जाएगा जार जार।।  हमने तो कब का,  कुछ कर दिया दरगुजार,  कुछ कर दिया दरकिनार।।            स्नेह प्रेमचंद