मत रखो, जकड़े चित चिंता,आशंका, डर या फिर कोई भी अवसाद विषाद।। मरने से पहले भी क्यों मरना, हो मन का कोना कोना आबाद।। होनी तो हो कर ही रहती है, चाहे कितनी ही कर लो फ़रियाद।।। लम्हा दर लम्हा गुज़र रही है ज़िन्दगी, फिर गुजरे लम्हे आते हैं याद।। स्नेह प्रेमचन्द