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अनुभव की भट्ठी

tun yaad aati hei mujhe

तूं याद आती है मुझे कैसे भुलाऊं री तुझे??? पल पल में तूं,आज कल में तूं, यादें रुलाती हैं मुझे।।। सांसों की डोर हुई कमजोर धड़कन रुकी जिंदगी थमी लागे है फिर भी तूं है यहीं कहीं।। तेरा अहसास है बड़ा खास लगता नहीं तूं नहीं अब पास सोचों में तूं ख्यालों में तूं हर गली में नजर आती है मुझे।। बहुत याद आती है मुझे।। सोचा ना था समझा ना था ये भी होगा तूं ना होगी भोर वो भी होगी कैसे आए विश्वास सोच की सरहद जहां तक जाए वहीं तक लाडो तूं नजर आए नही है पता मुझे कितना प्यार तुझ से पर ये पता है हो भीड़ कितनी आए नजर तूं सच लाडो इतनी चांद जैसे नजर आता है मुझे। बहुत याद आती है मुझे।। ओ चेतना मेरी वेदना कोई ना जाने री इसे।। गहरे से घाव सो गए चाव मरहम लगाए ना मुझे।।

सजल से हो जाते हैं नयन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सजल से हो जाते हैं नयन, जब जिक्र तेरा जेहन पर दस्तक दे जाता है। भीगा सा जाता है ये अंतर्मन, चित चहुं दिशा में,सब सीला सीला पाता है।। पहले तो आई नहीं समझ, पर अब बखूबी समझ आता है।। कितना सूना हो जाता है जग इतना बड़ा, जब कोई बहुत ही खास चला जाता है।। अब लगता है यूं हीं तो नहीं,  ये सावन भादों इतने गीले गीले होते हैं। ये दो मास हैं प्रतिबिंब उस पूरे साल के, जिनमे जाने कितने ही लोग कितने ही अपनों की याद में खुल कर रोते हैं।। मखमल के बिछोने भी लगते हैं टाट से, फिर चैन से हम कब सोते हैं?????

आकंठ तृप्ति का अहसास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 मिल जाते हैं जब गुरुजन और मित्र पुराने,आकंठ तृप्ति का होता है अहसास।।  चेतना में हो जाता है सकारात्मक स्पंदन, जिजीविषा चित में करने लगती है वास।। सुवासित हो जाते हैं अंतर्मन के सारे गलियारे। नाच उठता ही मन मयूर,जब जाते हैं हम गुरु के द्वारे।। मात्र एक परिचय नहीं,ये तो संबंधों एक पुनर्जन्म सा होता है। मिलन होता है अल्फाजों का भावों से, मधुबन मन का तरंगित होता है।। समय की धूलि से हो जाते हैं धूमिल जो गहरे से नाते, ये मिलन उनका, कोलिन होता है। साफ हो जाता है मन का दर्पण, उजला उजला सा मन एक दूजे का  प्रतिबिंबित होता है।। नए रिश्तों के नए भंवर में हम सच में उलझ से जाते हैं। पर मिलते हैं जब इन पुराने नातों से, एक आंतरिक खुशी से नयन मिलाते हैं।। सौ बात की एक बात है, समारोह ये दे जाता एक सुखद आभास। दिल से कर के देखो महसूस, आकंठ तृप्ति का होता है अहसास।। जिंदगी की नौका को,भाग्य की लहरे अपने ही बहाव में बहा ले जाती हैं। बेशक कितने भी बड़े हो जाएं हम, यादें पुरानी जेहन को बड़ी सुहाती हैं।। एक ख्याल फिर आता है जेहन में, काश ये बचपन के साथी जिंदगी में भी होते आस पास।। मिलते हैं जब गु...

खास नहीं अति खास लम्हे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

खास नहीं अति खास बन जाते हैं लम्हे,जब खास लोगों से होती है मुलाकात।। खुशी नहीं मिलती बाहर से,खुशी है भीतर का अहसास,मन प्रफुल्लित हो जाता है खिल जाते हैं मन के जज़्बात।।

मौन मुखर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब धड़कन धड़कन संग  बतियाती है, फिर हर शब्दावली  अर्थ हीन हो जाती है।। फिर मौन मुखर हो जाता है। ये दिल का दिल से  बहुत ही गहरा नाता है।। दिल में सबके घुस जाती थी  तूं हौले से, मेरी समझ को तो  इतना ही समझ में आता है।। मेरी सोच की सरहद  जहां तक जाती है। उस सरहद से भी परे  मुझे तो  आज भी नजर तूं आती है।। जब जब भी प्रेम और धीरज का इतिहास कभी भी लिखा जाएगा। ओ मेरी मां जाई! इस फेरहिस्त में तेरा  नाम सबसे ऊपर आएगा।।         स्नेह प्रेमचंद

कभी धूप कभी छांव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कभी धूप कभी छांव सी रही जिंदगी तेरी,मगर ना गिला,ना शिकवा,ना की शिकायत कोई। यूं तो जग के मेले में मिलते बहुत हैं, पर तुझ सा फिर ना मिला कोई।। तेरा नहीं ये सौभाग्य है हमारा, जो तूं शामिल रही जिंदगी में हमारी,खिली जिंदगी के सागर में कमल सी,तुझ जैसा खिला ना और कोई।।