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कभी कभी

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दुनिया से जाने वाले

मां एक कोहिनूर

कच्चे धागे

कच्चे धागे,पर पक्का बंधन,  दे देना भाई बस एक उपहार। दूँ आवाज़ जब भी दूर कहीं से भी,चले आना बहन के घर द्वार।। औपचारिकता भरा नही ये नाता, बस प्रेम से इसको निभाना हो आता, उलझे हैं दोनों ही अपने अपने परिवारों में, पर ज़िक्र एक दूजे का मुस्कान है ले आता।। उलझे रिश्तों के ताने बानो को सुलझा कर,अँखियाँ करना चाहें एक दूजे का दीदार, कच्चे धागे,पर पक्का बंधन, दे देना  भाई बस एक उपहार।। एक उपहार मैं और मांगती हूँ, मत करना भाई इनकार, दिल से निकली अर्ज़ है मेरी, कर लेना इसको स्वीकार, माँ बाबूजी अब बूढ़े हो चले हैं, निश्चित ही होती होगी तकरार, पर याद कर वो पल पुराने, करना उनमें ईश्वर का दीदार, उनका तो तुझ पर ही शुरू होकर, तुझ पर ही खत्म होता है संसार, कभी झल्लाएंगे भी,कभी बड़बड़ाएंगे भी, भूल कर इन सब को,उन्हें मन से कर लेना स्वीकार और अधिक तेरी बहना को,  कुछ भी नही चाहिए उपहार।। हो सके तो कुछ वो लम्हे दे देना, जब औपचारिकताओं का नही था स्थान, वो अहसास दे देना,जब लड़ने झगड़ने के बाद भी,बेचैनी को लग जाता था विराम, उन अनुभवों की दे देना भाई सौगात, जब साथ खेलते,पढ़ते, लड़ते,झगड़ते, पर कभी भी न दिखाते थे अपनी औकात।।

वही मित्र है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मुस्कान के पीछे की जो पढ़ ले उदासी,वही मित्र है* *बिन कहे ही जान ले जो मन की, वही मित्र है* *धूप छांव में जो संग खड़ा हो, वही मित्र है* *रोज बेशक मुलाकात हो ना हो, पर जब भी मुलाकात हो उसमे बात हो,वही मित्र है* *दिल की बात कर सकें खुल कर जिन से,वही मित्र है* *हाला के प्याले छलकाने वाले मित्र हों, ज़रूरी नहीं,छलकते गम को जो खुशी में बदल दे, वही मित्र है* *मित्रता का मतलब मात्र शराब शबाब, कबाब की त्रिवेणी बहाना नहीं है* *जब कोई कष्ट की घड़ी आए,जो संग खड़ा हो,वही मित्र है* *मित्र हर हाल में साथ नहीं छोड़ता* *मित्र मात्र हंसने हंसाने के लिए ही  नहीं होते,दुख की घड़ी में कांधा देने के लिए अधिक होते हैं* *एक अच्छे मित्र ने वेद बेशक ना पढ़े हों परंतु अपने मित्र की वेदना जो बिन बताए जान लेता है,वही मित्र है* *राघव और सुग्रीव* सी हो दोस्ती जहां हर हाल में दिया दोनो ने एक दूजे का साथ भगवान होते हुए भी थाम लिया वानर का हाथ** *माधव और अर्जुन*सी हो दोस्ती, जहां माधव ने मोहग्रस्त पार्थ को दिया था गीता ज्ञान। अर्जुन का परिचय करवाया उसकी  अनंत क्षमता से,दोस्ती थी पार्थ के लिए वरदान।। *माधव