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आप भी आओ हम भी आएं

तीन तीन भगवान

इतना अधिक कोई कैसे कर सकता है???(( जन्म जयंती पर भाव भीनी श्रद्धांजलि स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

इतना अधिक कोई  कैसे कर सकता है??? *एक बाबा अनेक किरदार*  विलक्षण प्रतिभा,बुलंद हौंसला, *ज्ञान का अनंत अथाह भंडार* *सिंबल ऑफ नॉलेज*भारत रत्न* *पीड़ित जनो के मसीहा* किस किस उपाधि से नवाजूं उनको?? *भारतीय संविधान के शिल्पकार* इतना अधिक कोई कैसे कर सकता है मेरी समझ से तो है ये पार।। शब्द स्तब्ध हैं भाव मौन हैं 11 स्वर और 33 व्यंजन भी नहीं बन पाते आधार।। अदभुत, अविश्वसनीय,अकल्पनीय, *बाबा एक अनेक किरदार* *संकल्प से सिद्धि तक छिपे होते हैं जाने कितने ही प्रयास* कोई शॉर्टकट नहीं होता सफलता का, *सही दिशा में मेहनत करने से ही बनते हैं अति खास* अति खास भी शब्द छोटा है उनके लिए,पूरा वतन ही उनके लिए था परिवार  अदभुत,अकल्पनीय,अविश्वसनीय*बाबा एक अनेक किरदार* *जाति,मजहब, रंग, प्रांत, देश, विश्व* सबसे उपर है मानवता का नाता* *यही सिखाया था बाबा साहेब ने* पर ये हमे समझ में क्यों नहीं आता?? महाशक्ति ने भी लोहा माना जिनका,  हैं वे *भारतीय संविधान के शिल्पकार*  *हर संज्ञा सर्वनाम विशेषण पड़ जाता है छोटा* * कर गए मानवता का ऐसा उद्धार *अपने भाग्य की बजाय अपनी मजबूती पर हो व...

ना दिन देखते हैं (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सच में काबिल ए तारीफ हैं  *इनके कर्म और इनके जज़्बात* आप भी जानो,हम भी जाने *ये तो न दिन देखते हैं  ना देखते हैं रात* *कर्म ही पूजा हैं* *उच्चारण में नहीं, आचरण में है इनके ये बात* कोई और नहीं  हैं,  ये हमारा प्यारा हिसार के मतवाले, *अच्छी सोच, कर्म,परिणाम की  त्रिवेणी बहाते हैं ये दिन रात*

सदियों से बीते हैं लम्हे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 सदियों से बीते हैं लम्हे, ना जाने कैसे बीता है ये युग सा साल। सच में जीवन में नहीं मिलता कोई तुझ सा पुर्सान ए हाल।। कौन कहता है वक्त सब घावों का मरहम,क्या कुछ कर पाया ये गुजरा साल???? दुख ही नहीं तेरे जाने का तो है जी में मलाल।। क्रम में सबसे छोटी घर में, पर कर्म में सबसे बड़ी तूं,सच तेरा तो औरा ही था बड़ा कमाल। तेरे आभामंडल का सदा रहा ऐसा  वायुमंडल,आक्सीजन प्रेम की दी सदा सबको,सच तूं थी बेमिसाल।। रह रह कर ऐसे याद आती है तूं, जैसे चाय में आते हों उबाल जिंदगी के आरंभ से प्रारंभ था अहसास ए वजूद तेरा, इसे जेहन से कैसे सकती हूं निकाल??? तूं तो जा कर भी नहीं गई मां जाई, सच मेरे ही नहीं जाने कितने दिलों का है ये हाल।।

प्यारी सी विदिता नन्ही सी जान(( दुआ स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने ही भीतर अमृत है