एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते,कलियाँ,अंकुर और हरी भरी शाखाएँ,विवधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे,पर मन की एकता की मिलती हैं राहें, हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, हैं सब आपस में भाई भाई,एक खून है,एक ही तन है,इंसा ने ही है ये जात पात बनाई,वसुधैव कुटुम्बकम की भावना काश की हमने होती अपनाई, फिर ना बनाता जश्न कोई किसी की मौत का,न हमने सरहद समझी होती परायी,जीयो और जीने दो के सिद्धांत की,क्यों नही हमने घर घर अलख जलाई,आतंकवाद का हो जाये खात्मा,ईद दिवाली हो सब ने संग मनाई,सुसंस्कारों की घुट्टी पीले अब हर इंसा, बदल दे अपनी सोच की राहें, धरा बन जायेगी स्वर्ग फिर बंध,ूअपने लाल को खो कर किसी माँ की नही निकलेंगी आहें,एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते और हरी भरी शाखाएँ