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वक्त के हाथ से

संरक्षित जीवन,सुनिश्चित खुशियां

संरक्षित जीवन,सुनिश्चित खुशियां आशा विश्वाश का खिले प्रभात यही मूल भाव है हमारे निगम का मिले जन जन को खुशियों की सौगात एक टोकरी में पुष्प अनेक हैं सुख,समृद्धि की सब करते बरसात आओ करो स्नान इस जनकल्याण के जल में, होगी सुखद फिर हर प्रभात जीवन को ये आनंद बना दे, जीवन में सुरक्षा के पुष्प खिला दे, जीवन लक्ष्य को पूरा करवा दे जीवन को हर पल उत्सव बना दे निवेश प्लस से खुशियां प्लस करा दे जीवन को उत्सव बना दे जीवन में शांति ला दे हर उत्पाद से अपने जीवन को सही लाभ दिला दे ऐसे अनोखे उत्पादों की पल पल मिलती है सौगात सुखद वर्तमान,उज्जवल भविष्य का खिले प्रभात संरक्षित जीवन,सुनिश्चित खुशियां बदल निगम हमारे हालात सुख हो या फिर दुख की बदली पहुंचे ना किसी को कभी आघात आर्थिक संबल का कंबल ओढ़ा देती   यह संस्था, आत्म सम्मान पर नहीं लगने देती है घात  जीवन के साथ भी,जीवन के बाद भी है,  साथ हो जब इसका, बेफिक्र हो जाते फिर दिन और रात

पता नहीं

कान्हा को गर पाना है तो

बिन मां के बीते आठ साल(विचार नीलम प्रेमचंद द्वारा))

बिन माँ के हुए 8 बर्ष-- 5 august 2016 माँ तुम्हें गए  हो गए आज आठ साल  आज भी हूँ अंदर तक खाली खाली  सहरा में ठंडक सी मां, पूरे जहां में सबसे निराली मां पास हो जब हमारे रोज ही होती है होली दिवाली सुना है वक़्त भर देता है  हर ज़ख्म  पर भूल न पाई  कभी तुम्हारी जुदाई  कौन सी ऐसी भोर सांझ है जब मां तूं ना हो मुझे याद आई तेरे वजूद से हो तो अस्तित्व है मेरा पर तुझ जैसे गुण मैं सहेज ना पाई तुम्हारी नसीहतों  हिदायतों के पुलिंदे  रखे हैं मन में समेट कर  जब भी कहीं  अटकती हूँ/भटकती हूँ  दिखाते हैं रोशनी  तेरी नसीहतों के दीये  फिर भी खो जाता है मन  घुप काले अंधेरों में फिर घने तमस में बन उजियारा तुम ऐसे आती हो जैसे किसी झरोखे से आते हैं सूरज की रोशनी में नृत्य करते से धूलि कण  आता है जेहन ने तेरा विराट व्यक्तित्व जिसके आगे मेरा कद बौन्ना हो जाता है किसी अभाव का प्रभाव ना हुआ मां तुझ कर, तुझे कर्मों से भाग्य बदलना आता था बहुत कुछ है सीखने को तुझ से, पर तुझ सा कहां बना जाता है चाहे कहो इसे मेरा...

माधव नहीं आते हर बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

माधव नहीं आते हर बार फिर क्यों करना इंतजार दामन ना हो दागदार किसी का हो हर नागरिक जिम्मेदार गली गली में खड़े दुशासन चित में पनप रहे विकार बचेगी नारी तो पढ़ेगी नारी सुरक्षा सबका है अधिकार पूजा भले ही ना करो नारी की पर अस्मत ना हो उसकी तार तार तन ही नहीं रूह भी हो जाती है रेजा रेजा,अपंग सा लगता है संसार भली भांति आने लगता है समझ माधव नहीं आते हर बार आम जन अब आए आगे भ्रष्ट व्यवस्था में हो गाढ़ा सुधार दंड का प्रावधान हो ऐसा, बुरा करने से पहले सोचे  व्यक्ति सौ सौ बार गण और तंत्र दोनों ही हों जिम्मेदार सृष्टि की रचना करने वाली, जिंदगी की जंग जाए ना हार शिक्षा मात्र अक्षरज्ञान ही है जब तक इसके भाल पर नहीं सोहते संस्कार सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी बहती आई है सदा से, सही सोच का हो जेहन में सबके संचार हम भी समझे तुम भी समझो माधव नहीं आते हर बार बेटी दिवस तभी हम सही मायने में मनाएंगे जब हर बेटी सुरक्षित होगी वतन में, सच्ची होली दिवाली बनाएंगे बेटियों को सही मायने में फिर मिल जाएंगे अधिकार मुरली की तान भले ही ना सुने वे, सुदर्शन चक्र का समझे मूल आधार

बेटी दिवस के मायने(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बेटी दिवस को क्यों ना इस बार कुछ ऐसे मनाएं बेटी सुरक्षित हो वतन में हमारे, गण और तंत्र दोनों की जिम्मेदारी बनाएं कोई बेटी ना हो अपमानित द्रौपदी सी कभी सब माधव बन कर आगे आएं क्यों इंतजार करें हम आएंगे कान्हा, बांसुरी नहीं सुदर्शन चक्र चलाए दमन हो बुराई का सदा के लिए, मन भीतर से सबके निर्मल हो जाएं हो ना कभी दागदार दामन किसी बेटी का , इस मुहिम का सब हिस्सा बन जाएं सब निर्भय हों सब सुरक्षित हों ऐसा विश्वाश हर बेटी में जगाएं तब ही मनेगा सही मायने में बेटी दिवस,ऐसी अलख जन जन में जगाएं फिर ना दहले कभी दिल्ली,कभी मणिपुर कभी कलकत्ता फिर ऐसी घटना कोई ना दोहराए बचेगी बेटी तभी तो पढ़ेगी बेटी पढ़ेगी बेटी तो आगे बढ़ेगी बेटी उच्चारण नहीं इसे आचरण में लाएं शिक्षा भाल पर संस्कारों का ऐसा टीका लगाएं कोई बेटी नहीं पराई,  दूजे की अस्मत अपनी ही पाएं ऐसी सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी क्यों ना मिल कर हम सब आगे बहाएं फिर बेटी दिवस मनाने की कोई जरूरत ना होगी, ऐसी सोच का दीपक घर घर में जलाएं