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Poem on Zakir Hussain बहुत याद आओगे(( श्रद्धांजलि स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब जब भी जिक्र होगा तबले का तब तब तुम आओगे याद उदास है तबला,स्तब्ध है ताल  आज तबले ने खो दिया अपना उस्ताद वाह उस्ताद! निकलता था दिल से सीधा, हर श्रोता से जैसे कर लेते थे संवाद एक शून्य सा उभर कर आया है सच आपके जाने के बाद जाकिर मतलब *तबला*  ऐसा ही जेहन में आता है *रविशंकर* जैसे *सितार* में  *उस्ताद अमजद अली* जैसे *सरोद* में रहे ऐसे ही तबले में वोकल शैली  कर दी थी आपने इजाद संगीत से प्रेम है जिसे और करता है जो साधना संगीत की फिर शराब सिगरेट किसी और नशे की नहीं रहती दरकार ऐसा मानना था हुसैन जी का, संगीत अच्छे स्वास्थ्य का सदा देता है उपहार उदास हैं ताल परेशान हैं स्वर लहरियां, सूना हुआ एक कोना जो पिछले 73 बरसों से था आबाद जब जब भी जिक्र होगा तबले का, आओगे तुम दिल से याद *माधुर्य सृजन और चमत्कार* यही आपकी शैली का रहे आधार *शास्त्रीय संगीत को जोड़ा पश्चिमी संगीत से* लोक संगीत,राक,जैज के दिग्गजों के साथ फ्यूजन संगीत पैदा कर दिखा दिया अपना तबले से प्यार ऐसा बजाया और ऐसा चित को भाया आपका तबला,जैसे दिल से कर रहा हो संवाद जब जब भी जिक्र होगा तबले का,तब तब तुम आओगे...