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सच में रेगिस्तान हरे हो जाते हैं

तूं आज भी चित में रहती है

प्रयास

उस्ताद नहीं मुझे शागिर्द कहो

क्या नहीं कर सकते ये हाथ

मेहमान

प्रेम पैमाना